YouTube’s New AI Search Carousel Is Changing How We Discover Videos — Here’s What You Need to Know You know that moment when you type something like “best cafés in Paris” into YouTube, and you’re buried under a flood of random vlogs, listicles, and unrelated reviews? Yeah, we’ve all been there. But that chaotic hunt for the right video might soon be a thing of the past. YouTube just rolled out an AI-powered search carousel — and it’s not just another shiny feature. It’s a smart, intuitive, and (honestly) much-needed step forward that could completely change how we search for and interact with video content. Let me break it down — not like a press release, but like someone who geeks out about this stuff and actually uses YouTube every day. --- What Is YouTube’s AI Search Carousel? In simple terms: YouTube now shows an AI-generated video carousel when you search for things like: Travel recommendations Local activities and attractions Shopping inspirati...
ट्रंप और मस्क में ठनी: आपदा में अवसर नहीं तलाश पाए मोदी? और कितनी बेइज्जती करवाएंगे?
"अंकल, क्या सच में अब हमारा इलाज नहीं होगा? क्या अब हमें ऐसे ही जीना पड़ेगा?" ये सवाल है 12 साल की छोटी रीना का, जो पिछले पांच सालों से एक दुर्लभ बीमारी से जूझ रही है. उसकी आँखें टकटकी लगाए अपने पिता की ओर देखती हैं, जो इस सवाल का जवाब देने से पहले ही टूट चुके हैं. रीना का यह सवाल सिर्फ उसका नहीं, बल्कि उन हजारों भारतीय परिवारों का है जो उम्मीद लगाए बैठे थे कि भारत एक वैश्विक आपदा में सिर्फ खुद को ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी सहारा दे पाएगा. लेकिन बीते कुछ दिनों में जिस तरह से वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका और प्रतिक्रिया पर सवाल उठे हैं, वो कहीं न कहीं रीना जैसे बच्चों और उनके अभिभावकों की उम्मीदों पर पानी फेर रहे हैं.
हाल ही में अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और टेस्ला व स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क के बीच भारत को लेकर छिड़ी जुबानी जंग ने देश को वैश्विक बिरादरी में एक अजीब स्थिति में ला खड़ा किया है. यह विवाद तब शुरू हुआ जब ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से भारत पर अमेरिका से वित्तीय मदद लेने और फिर रूस से तेल खरीदने का आरोप लगाया, जिससे अमेरिकी टैक्सपेयर्स के पैसे का दुरुपयोग होने का संकेत दिया. एलन मस्क ने भी इस बहस में कूदते हुए भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और आर्थिक निर्णयों पर तीखी टिप्पणी की. यह सिर्फ शब्दों का आदान-प्रदान नहीं था; यह भारत की वैश्विक छवि और उसकी विदेश नीति के समक्ष एक बड़ी चुनौती थी, खासकर तब जब देश 'विश्व गुरु' बनने की आकांक्षा रखता है.
इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा प्रभावित वो आम लोग हैं, जो वैश्विक घटनाओं से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं. जैसे रीना के पिता, रमेश, जो एक छोटे कारोबारी हैं. वे कहते हैं, "हमें लगा था कि यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया में नई व्यापारिक और कूटनीतिक समीकरण बनेंगे, और भारत इसका लाभ उठाएगा. सरकार ने 'आपदा में अवसर' का नारा दिया था. लेकिन अब तो लगता है कि हम आपदा में ही फंस गए हैं और अवसर कहीं दूर निकल गया है." रमेश की चिंता वाजिब है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति कमजोर होने से विदेशी निवेश, व्यापार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर सीधा असर पड़ता है, जिसका खामियाजा अंततः आम आदमी को भुगतना पड़ता है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि इस स्थिति का कोई सकारात्मक पहलू नहीं है. कुछ विश्लेषक मानते हैं कि यह घटना भारत को अपनी विदेश नीति का पुनर्मूल्यांकन करने और आत्मनिर्भरता की दिशा में और अधिक तेजी से बढ़ने का अवसर देती है. यह भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे भविष्य में ऐसी वैश्विक उथल-पुथल का असर कम हो सके. कई भारतीय स्टार्टअप और कंपनियां अब अपनी वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने और घरेलू नवाचार को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जो एक मजबूत और लचीली अर्थव्यवस्था के निर्माण में सहायक होगा. उदाहरण के तौर पर, पुणे की एक फार्मा कंपनी ने हाल ही में अफ्रीकी देशों को सस्ती दवाएं निर्यात करने का एक बड़ा अनुबंध हासिल किया है, जो दर्शाता है कि भारतीय उद्योग अभी भी वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं.
लेकिन इस पूरे प्रकरण का एक नकारात्मक पक्ष भी है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. आलोचकों का कहना है कि सरकार इस मुद्दे पर पर्याप्त रूप से मुखर नहीं रही है, और उसने वैश्विक मंच पर भारत के हितों की प्रभावी ढंग से रक्षा नहीं की है. विपक्षी दल लगातार सरकार पर "कमजोर कूटनीति" और "वैश्विक बेइज्जती" का आरोप लगा रहे हैं. सवाल यह भी है कि जिन आवाजों को सुना जाना चाहिए था, जैसे कि उन विशेषज्ञों और कूटनीतिज्ञों की, उन्हें इस बहस में क्यों नहीं शामिल किया गया? क्या सरकार एक मजबूत और एकीकृत प्रतिक्रिया देने में विफल रही है? इससे उन लाखों भारतीयों की उम्मीदों को धक्का लगा है जो देश को विश्व शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं.
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर सुनील वर्मा कहते हैं, "ट्रंप और मस्क की टिप्पणियां भारत के लिए एक कूटनीतिक संकट से कहीं अधिक हैं. यह वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव और भारत की स्थिति को लेकर एक महत्वपूर्ण संकेत है. हमें यह समझना होगा कि अब वैश्विक राजनीति में सिर्फ सैन्य या आर्थिक शक्ति ही नहीं, बल्कि एक प्रभावी और स्पष्ट नरेटिव भी महत्वपूर्ण है. भारत को अपनी बात मजबूती से रखने और अपनी नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने सही ढंग से पेश करने की जरूरत है." वे आगे कहते हैं, "हमें अपनी कूटनीतिक प्रतिक्रियाओं में और अधिक फुर्ती लाने की आवश्यकता है, ताकि ऐसी टिप्पणियों का तुरंत और प्रभावी ढंग से जवाब दिया जा सके, और देश की प्रतिष्ठा पर कोई आंच न आए."
आगे की राह क्या है? यह स्पष्ट है कि भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करना होगा. उसे सिर्फ आर्थिक और सैन्य शक्ति के भरोसे नहीं रहना होगा, बल्कि अपनी सॉफ्ट पावर और वैश्विक नेतृत्व की भूमिका को और मजबूत करना होगा. इसका अर्थ है कि भारत को वैश्विक मुद्दों पर अपनी राय अधिक स्पष्टता और आत्मविश्वास से रखनी होगी. उसे अपने सहयोगियों और भागीदारों के साथ अपने संबंधों को और गहरा करना होगा, और साथ ही, उन देशों के साथ भी संवाद जारी रखना होगा जिनसे उसके मतभेद हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत को अपनी आंतरिक मजबूती पर ध्यान केंद्रित करना होगा – अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना, अपने लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना, और अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखना. तभी भारत वैश्विक मंच पर अपनी सच्ची क्षमता का प्रदर्शन कर पाएगा और रीना जैसे बच्चों की आंखों में फिर से उम्मीद की चमक लौट पाएगी, कि उनके देश की बेइज्जती नहीं, बल्कि गौरव होगा.
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